जीवन में कुछ पाने की
अभिलाषाए जब जग जायें
तभी तोह जीवन को जीने की
आशाएं नज़र आयें
निराशा के चंगुल से छूट
भाग्य दुल्हन बन बैठी हें
सारी खुशियाँ दामन में
किस्मत दीपों सी जगमगायें
कब जीवन अंत हो जाये
इसका हमें है ज्ञान नहीं
बस लोगों के कहने की
परवाह हम कर बैठें हैं
सुन्दरता का घमंड हमें है
ना जाने कब मिट जाएंगें
मिटटी से बने हुए है
मिटटी में मिल जाएंगें … “निवेदिता”
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