सोते सोते जाग गई ,
कहीं खोते खोते मिल गई ,
स्वप्न देखे जो बचपन में,
अर्ध योवन में जी गई ,
सोते सोते जाग गई ..
स्वप्न में तुझसे मिली ,
बंद आँखों में छिपी ,
तेरी तस्वीर कोरे काग़ज़ ,
पर उकेर गई ,
सोते सोते जाग गई ..
पता कहाँ था मालूम ,
नींदों में गलियाँ देखीं,
ढूँढते हुए तुझे,
कहीं तेरे दर पे आगई,
तभी सोते सोते जाग गई…
तूने भी झूठे स्वप्न दिखाए
उन सपनों को सच मान गई
कड़वे बोल ज्यों ही तेरे
मेरे कानों में पड़े
सोते सोते फिर जाग गई.. “Nivedita”
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