नए नए अल्फ़ाज़ों में
उमंगें हैं नयी नयी ‘
नए नए से चेहरे हैं ‘
हर चेहरे की एक किताब नयी.……।
मैंने उस किताब को चुनि
जिसे पढने वाले पहले से हैं,
बहुत से अल्फाजों में ,
गौण मेरी आवाज़ कहीं। ………….
किताबें और बहुत हैं आलों (शेल्फ)में
धूल जमी हैं पर्तोंपरत
नईं पुस्तक रोज़ शामिल किऐ
पुरानी किताबें वहीँ पड़ी। …
पुराने शब्द धूमिल भये
शब्द कोष में शब्द नहीं
मिटती स्याही लेखनी की , बस
शब्दों की माला झूल रही …।
हाथ फेरती पन्नों पे
छुवन लकीरों की महसूस हुई
आस कहीं अब भी बाकी है
उस किताब को पाने की … ।
मेरी पुस्तक अब भी वहीं
बीत गए साल केयी
यूँही मँझधार में झूल रही
जो ख़त्म अभी तक हुई नहीं ..।
खुले पन्ने बिखर रहे हैं
जिल्द पुरानी बची नहीं
उन पन्ने को पलटने से
आने वाली मुस्कान नयी ……। “निवेदिता”
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