मुझे रंज है तुझसे ऐ चाँद , तू वहाँ तेरी ज्योत्सना को अपनी आग़ोश में लिए बेठा है ,

यहाँ ज्योत्सना का चाँद ,कहीं काजल की स्याह में छुपा बैठा है ,

बादलों की झुर्मठ से झाँकता ,निकलता फिर छुप जाता ,

यूँ लुका छिप्पी खेलता दीख़ता है , बादलों के गोद में प्रेयसी के साथ खेलता है ,

मैं ना खेलूँ, तो भी उसे कहाँ फ़र्क़ पड़ता है , बस ऐसा कहकर दिल को ठंडक सा मिलता है ।

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