साल दर साल से यह सिलसिला चलता जा रहा है
हर साल की तरह एक साल जाता है नया आता है
यही कोई छः महीने गर्मी के और कुछ छः सर्दी के
पर कुछ भी कहो इस साल सा न कभी साल देखा..
पिछले साल में हमने हर साल से अधिक साल देखा..
बन्द चार दिवारी में जब देखने को और कुछ न था
तो अपने और अपनों के मुखौटों के पीछे छिपा
वो दोगला चेहरा जो कभी न दिखा वह भी इस साल देखा..
फ़र्क़ सिर्फ इतना सा है कि इस बार यह साल अपने साथ
महामारी लेकर आया था और नया साल उसका इलाज
बचपन से देखा है पुराने साल के खत्म होने का जश्न
पर नये साल के आने की खुशी तो बस इस साल देखा..
प्रकृति ने भी खूब रोष दिखाया कभी भूकम्प कभी तूफान
जंगलो में होता अग्नि का पसार तो समुद्र में उबलता उफान
कहीं बाढ़ कहीं स्खलन लेकिन फिर बदलती करवट में प्रदूषण कमना और गंगा में डॉल्फिन भी इस साल देखा..
ज्योत्सना “निवेदिता”

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