शोर मचा क्या भोर हुआ
देखो रोशन चहुं ओर हुआ
करके चंद्रिका का हरण
वो चाँद कहीं ओझल हुआ ।।
कौन था वो जो आया था
मुझे नींद से जगाया था
मेरे जीने का रुख मोड़ गया
सुनहरे स्वप्न दिखाने आया था ।।
निःस्वार्थ कभी शब्दों से कभी रँगों से
मोह गया मोहक मोहनी हँसी से
हवा के झोंके सा जीवन मे आया
क्षण भर में बीत गया अपनी ही गति से।। ज्योत्स्ना “निवेदिता”
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