Tag: bhakti

  • छलिया

     मैं मीरा बन तड़प रही , वो गोपियों संग रचाए रास, दूर बसी क्यूँ मीरा भाए ? जब रहते राधा के पास ;  मैं प्रेम में जोगन बनी ,  उनके मन को गोपी ही भाए ।  मैं उनका नाम रटते नहीं थकती ,  उनको मेरा नाम नहीं भाए ।  पूजूँ नित प्रातःनिशि मध्याह्न , पर…

  • मेरा कृष्ण

    चिर अंधेरों को चीरते हुए उस रोशनी के पीछे भागते चले जा रहे हैं , जो वाक़ई है ही नहीं , रेगिस्तान में प्यासे को मृगमरिचिका हो ज्यों ।  वैसे ही मात्र एक भ्रम ज़िंदगी का , कैसा खेल है यह .. एक खेल जहाँ कौन मंत्री कौन प्यादा नहीं मालूम .. कौन रानी कौन…