‘पास बैठे और बस बैठे हि रहे तूँ
चंचल सी पलकें मचलती रहे यूँ
हिरणी सी तेरी चाल निहारूँ
तू उठे तो संग तेरे उठूँ मैं
चले तो संग तेरे चलूं मैं
बातें जो तेरी पुतलियाँ कहें
नज़रों को समझने की कोशिश करूँ मैं
मेरी नज़रों से जो देखे तो जाने
कैसे तेरी हर हरकत में विद्युत् भरुं मैं
तुझे सुनूं और सुनता ही रहूँ में
तेरी खामोशियों पे भी हामी भरूँ मैं
तेरे केशों में उंगलियां मेरी चले यूँ
उलझनों को यूँ ही सुलझता रहूँ मैं
लबों पे तेरी सिलवटों को समझूँ
सभी उदासियों को दूर करूँ मैं
समीप मेरे जो जरा तूं बेठे
बाँहों में पकड़ झट बाँहों में भर लूँ मैं।। “निवेदिता”
तुम और मैं
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One response to “तुम और मैं”
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Where were you all this time? It’s आ sheer treat reading you. Magnificent.
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