पिता

तुम जगी हो अगर उसे सुलाते हुए रात भर,
जगा हूँ मैं भी बत्तियां बुझाने को मगर.
चोट उसे लगी, दर्द मुझे हुआ तुम रोई हो अगर
भागा तो मैं भी हूँ उसे दावा लगाने को मगर.
तुमने सीने से चिपका कर दूध पिलाया,

टहला तो मैं भी हूँ छाती से लगाये ,

जब लगी आने उसे हिचकियाँ रात भर ..
अंगुली थाम कर चलना सिखाया है तुमने अगर,
तो संभाले  है उसके डगमगाते कदम मैंने भी मगर
कल ब्याह का सपना संजोने जो लगी तू है अगर
उज्जवल भविष्य को उसके सँवारा है मैंने भी मगर
कल गुड्डे गुड्डियों का खेल खेलती थी, 

आज हमारी गुडिया चली हमें छोड़ कर

विदा तूने जो किया सिसकियाँ भर के अगर 
तो नम पलकों से डोली में बिठा रोया तो मैं भी बहुत फफक – फफक कर

बन्ध कमरे में मगर……..

कमजोर  है तूँ , कठोर हूँ मैं अगर

11 हूँ, पत्थर तो नही, बंध कमरा ही मिला है रोने को मगर।। … “निवेदिता”


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5 responses to “पिता”

  1. Pk Avatar
    Pk

    Amazing…

  2. bhaatdal Avatar

    सही कहा क्यूँकि पिता अपने भावों कोंकनी अभिव्यक्त नहीं कर सकते , और बेटियाँ ही उन्हें समझ सकती है , बहुत बहुत आभार प्रोत्साहन के लिए । शायद इसलिए कि आप भी एक पुत्री हैं और पिता के भावों और भावनाओं को समझ सकते हैं ।

  3. […] Source: पिता […]

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