अजीबियत का दौर चल पड़ा शायद … अजीब है !!
जो हो रहा है सब अजीब ,जो पाया है क्या सच में पाया है ? न पाया तो अजीब है , । साल गुज़र गया और जहां साल भर पहले समय बहुत था , व्यस्ततम में “व्यस्त” नहीं , आज सब के लिए समय है पर मेरे लिए ” व्यस्त” !!! कितना अजीब है , !! । जब माँगा नहीं तब मिलजाना कितना अजीब था आज चाहे तो भी न मिलना कितना अजीब है । कभी Santa कभी Pucchu कभी नोनू , कभी छुटकू, क्या पाया , क्या खोया जाने कितना अजीब है,।। इंतज़ार दिन रात का मात्र एक मुकुराहट का कितना अजीब है , मेरी चाहतों का बांध सब्र ने रोक रखा है , यह भी अजीब है । मुझे तेरा इंतज़ार है तुझे मेरा नहीं , हैना!! कितना अजीब है । ये साल भी निकल रहा है पिछले साल की तरह, तब तेरे आने की दस्तक की ख़ुशी से अजीब था आज कितना निष्ठुर ओह !! अजीब है साल दर साल हर साल अजीब है , मेरी बातों मैं जहां कल तक ऱस था आज कितना नीरस अजीब है , कल जितना अजीब था आज उससे भी अजीब है बस नया साल आने को है वो कितना अजीब होगा यह सोचना ही अजीब है ।। अब यह सोचना की क्या कभी समझ आयगा? क्या व्यवहार बदल पायेगा ? यह भी अजीब है ।। …… “निवेदिता”
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