जानती हूँ ,सब जानती हूँ,मन माने ,ना माने ,मैं सब मानती हूँ,
चाहना तेरी है ,तुझसे नहीं
चाहत तुझसे ,किसी अनजान से नहीं
तूँ चाहे, ना चाहे , तुझे चाहती हूँ….
जानती हूँ ,यह भी जानती हूँ ,
तुझ तक पहुँचना मेरे बस में नहीं ,
स्वप्न ये मेरा , तुझे सरोकार नहीं
नयनों में काजल को रमाया , ज्योति नहीं ,
तूँ चाहे, ना चाहे , तुझे चाहती हूँ ….
जानती हूँ ,अब यह भी जानती हूँ ,
शरीर मात्र पाया ,आत्मा नहीं ,
लौ तो जलायी पर , दीया नहीं ,
तू रोष देख पाया ,मेरी याचना नहीं ,
तूँ चाहे, ना चाहे , तुझे चाहती हूँ…
जानती हूँ ,यह भी जानती हूँ ,
इबादत है तेरी , कोई काम नहीं
है निवेदन ! “निवेदिता “का निष्काम ,
तू पत्थर ही सही , मेरा भगवान मानती हूँ,
तूँ चाहे, ना चाहे , तुझे चाहती हूँ….”निवेदिता”




Leave a Reply to bhaatdal Cancel reply