अंतराल

सुनैना कभी कभी दिनभर उस खाली जगह में लिखती रहती , सब काम छोड़ मोबाइल में ही मन रमता था आजकल जाने क्या चल रहा था उसके मन में। माँ भी अब हार मान चुकी थी जानती थी वो नहीं आने की.. जाने क्या लिखती है अचंभित माँ मन ही मन सोचती।


इधर सुनैना उस रिक्त स्थान पर कभी लिखती कभी मिटाती,
सोचती भेज दे उन्हें और कह दे जो कहना चाहती है,
पूछे की कैसे हैं, खुद की तसल्ली के लिए
खीजकर सोचती भी है टाइम बे टाइम अपने मन की बात लिखती है मिटाने के  लिए..
अपने ही मन से बनाई उनके “मन” की बात, मन ही मन में सोच कर कुछ देर का वीराम ले लेती है ..
सुबह को दिन का,
दिन को रात का,
और
रात को जब वो नहीं सोते हैं तो झल्लाकर
कभी कभी कह भी देती है ..

“सोते क्यों नहीं?..
सो जाइये कुछ पल मुझे भी आराम मिलेगा
यहाँ वहां आपके पीछे तो न भागना पड़ेगा।”

पर आवाज़ है गूँज लेती है…
उस खाली डिब्बे में और उसके मन में
और फिर ..
वही
कुछ देर का अंतराल

और  लिख दिया कैसे हैं आप? ठीक तो हैं? कहाँ थे अब तक क्यों नज़र न आये..
और एक खामोशी से मिटा दिया । #निवेदिता

Comments

2 responses to “अंतराल”

  1. Kumar Harsh Avatar

    अति सुंदर।

  2. bhaatdal Avatar

    धन्यवाद

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