क्या तुम जाग रहे हो
मेरे नयनों में स्वप्न बन
जगते हुए जगमगा रहे हो
मेरी अनकही बातों को
क्या सुनपा रहे हो
नहीं आती हूँ अब तुम्हें सताने
पर क्या तुम मुझे
सताए बिना रह पा रहे हो
तुम्हें विधाता ने मेरे लिए
चुनकर बुनकर भेजा है
ठीक उस झमझमाती हुई
बारिश की तरह
जो आती तो बहुत तेज़ है
पर उसी तेज़ी से धीमी हो
चली जाती है
फिर भी मैं मेरे भीगे हुए “मन”
को निचोड़कर उन यादों को
संजोये बैठी हूँ
क्या तुम्हें भी मेरी याद आरही है
बोलो क्या मैंने भी तुम्हारी तरह
तुम्हारे ह्रदय मेंअपने लिए
एक कुटीया बना ली है.. ज्योत्सना “निवेदिता”
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