कैसे हैं आप?
यह भी जानती हूं मेरे ऐसा कहने और करने की कोई आवश्यक्ता भी नहीं और न ही आपको कोई फर्क पड़ेगा फिर भी पूछना मेरी आदत बन गई है और मजबूरी भी। न जवाब का इंतजार न उम्मीद, बस पूछ लेना मेरी विवशता है क्यूंकि जानती हूं जैसे भी होंगे ठीक ही होंगे क्योंकि मेरी प्रार्थनाएं आपके साथ हैं।
मैंने कहां यह कहा कि मुझे चांद सितारे चाहिए मैंने तो बस एक हामी मांगी,इत्ती सी- वो भी उतनी ही जो यह बता दे कि आप कुशल हैं और इससे ज्यादा कुछ भी तो नहीं। खैरियत चाहना अगर गुनाह है तो हां हूं मैं गुनहगार ऐसा कहते कहते वो रोने लगी।
आईना में से झांक रहा वो कुछ कहना चाहता था और कहने को मुंह खोला ही था कि रचना मुड़कर दुपट्टे से मुंह ढककर रोने लगी और रोते रोते बोली कितनी अकेली रह गई हूं मैं! क्यों तुम नहीं हो मेरे पास और क्यों मेरी जरूरत तुम्हें नहीं।
सब साथ छोड़ दें तब
जब वक्त साथ दे नहीं
सभी व्यस्त अतिव्यस्त
एक मैं ही रही अकेली
न पूछो कहां थे न पूछो
कौन आए थे न पूछो
वो वस्त हैं अतिव्यस्त
एक मैं ही रही अकेली
किसी ने भी नहीं चाहा
किसी से भी न ज्यादा
रहे सब में व्यस्त अतिव्यस्त
एक मैं ही रही अकेली..
ज्योत्सना “निवेदिता”
Ps: एक विरहणी की मनोदशा जो प्रेम में डूबी हुई अपने प्रेमी के आने की बाट जो रही है और खैरियत चाह रही है। वहां से कोई जवाब ना आने पर व्यथित हो जाती है और स्वयं को दुनिया से अलग थलग पा रही है।
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