ज्ञान अहम ला सकता है परंतु सच्चे ज्ञानी वही हैं जिन्हें लेश मात्र भी अहम न हो। महाकवि तुलसी दास जी ने श्री रामचरित मानस में लिखा है
आखर अरथ अलंकृति नाना।
छंद प्रबंध अनेक बिधाना।।
भाव भेद रस भेद अपारा।
कबित दोष गुन बिबिध प्रकारा।।
कबित बिबेक एक नहिं मोरें।
सत्य कहउँ लिखि कागद कोरे।।
अर्थात
नाना प्रकार के अक्षर, अर्थ और अलड्कार, अनेक प्रकार की छन्द रचना,भावों और रसों के अपार भेद और कविता के भाँति-भाँति गुण दोष होते हैं। इनमें से काव्य सम्बन्धी एक भी बात का ज्ञान मुझमें नहीं है, यह मैं कोरे कागज पर लिखकर सत्य-सत्य कहता हूँ।
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