बारिश हूं ठहरती नहीं हूं
बरसकर निकल जाती हूं
जहां भी गिरी हूं धरा पर
नदी बनकर बह जाती हूं
बारिश हूं ठहरती नहीं हूं।
जो तुमने भर लिया हो
जब बरस रही थी तो
समझो तुमने पा लिया
मैं अकारहीन रंग विहीन
बह जाती हूं ठहरती नहीं हूं।।
ज्योत्सना “निवेदिता”
बारिश हूं ठहरती नहीं हूं
बरसकर निकल जाती हूं
जहां भी गिरी हूं धरा पर
नदी बनकर बह जाती हूं
बारिश हूं ठहरती नहीं हूं।
जो तुमने भर लिया हो
जब बरस रही थी तो
समझो तुमने पा लिया
मैं अकारहीन रंग विहीन
बह जाती हूं ठहरती नहीं हूं।।
ज्योत्सना “निवेदिता”
by
You are back!
Leave a Reply to Rajiv Cancel reply